नि:संदेह भारतीय व्रत एवं त्योहार हमारी
सांस्कृतिक धरोहर है। हमारे सभी व्रत-त्योहार चाहे वह होली हो, रक्षा-बंधन हो, करवाचौथ
का व्रत हो या दीवाली पर्व, कहीं न कहीं वे पौराणिक
पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका वैज्ञानिक पक्ष भी नकारा नहीं जा सकता।
दीवाली अथवा दीपावली का पर्व एक पांच
दिवसीय त्योहार है। यह त्योहार सदियों से मनाया जाता
है। आइए, दीवाली की पौराणिक कथाओं, इसके महत्व व ऐतिहासिक पक्ष को जानें!
त्योहार या उत्सव हमारे सुख और हर्षोल्लास के
प्रतीक है जो परिस्थिति के अनुसार अपने रंग-रुप और आकार में भिन्न होते हैं। त्योहार
मनाने के विधि-विधान भी भिन्न हो सकते है किंतु इनका अभिप्राय आनंद प्राप्ति या
किसी विशिष्ट आस्था का संरक्षण होता है। सभी त्योहारों से कोई न कोई पौराणिक कथा
अवश्य जुड़ी हुई है और इन कथाओं का संबंध तर्क से न होकर अधिकतर आस्था से होता है।
यह भी कहा जा सकता है कि पौराणिक कथाएं प्रतीकात्मक होती हैं।
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीवाली का
त्योहार मनाया जाता है। दीवाली को दीपावली भी कहा जाता है। दीवाली एक त्योहार भर न
होकर, त्योहारों की एक श्रृंखला है।
इस पर्व के साथ पांच पर्वों जुड़े हुए हैं। सभी पर्वों के साथ दंत-कथाएं जुड़ी हुई
हैं। दीवाली का त्योहार दिवाली से दो दिन पूर्व आरम्भ होकर दो दिन पश्चात समाप्त
होता है।
दीवाली का शुभारंभ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष
त्रयोदशी के दिन से होता है। इसे धनतेरस कहा जाता है। इस दिन आरोग्य के
देवता धन्वंतरि की आराधना की जाती है। इस दिन नए-नए बर्तन, आभूषण
इत्यादि खरीदने का रिवाज है। इस दिन घी के दीये जलाकर देवी लक्ष्मी का आहवान किया
जाता है।
दूसरे दिन चतुर्दशी को नरक-चौदस मनाया जाता है। इसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है। इस दिन एक पुराने दीपक
में सरसों का तेल व पाँच अन्न के दाने डाल कर इसे घर की नाली ओर जलाकर रखा जाता
है। यह दीपक यम दीपक कहलाता है।
एक अन्य दंत-कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने
इसी दिन नरकासुर राक्षस का वध कर उसके कारागार से 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया था।
तीसरे दिन अमावस्या को दीवाली का त्योहार पूरे भारतवर्ष के अतिरिक्त विश्वभर में बसे भारतीय हर्षोल्लास के साथ
मनाते हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी व गणेश की पूजा की जाती है। यह भिन्न-भिन्न
स्थानों पर विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है।
दीवाली के पश्चात अन्नकूट मनाया जाता है। यह
दीवाली की श्रृंखला में चौथा उत्सव होता है। लोग इस दिन विभिन्न प्रकार के व्यंजन
बनाकर गोवर्धन पूजन करते हैं।
शुक्ल द्वितीया को भाई-दूज या भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि यदि इस दिन भाई और बहन यमुना में स्नान करें
तो यमराज निकट नहीं फटकता।
दीवाली की कई पौराणिक कथाएं हैं, इन्हीं में से कुछ इस प्रकार हैं:
दीवाली - रामचंद्र का बनवास काटकर अयोध्या लौटना
दीवाली - रामचंद्र का बनवास काटकर अयोध्या लौटना
रामायण के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजकुमार राम अपने पिता दशरथ की आज्ञा से 14वर्ष का वनवास काटकर तथा लंकानरेश रावण का वध कर पत्नी सीता, अनुज लक्ष्मण तथा भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा उठी। उसी समय से दीवाली पर दीये जलाकर, पटाखे बजाकर तथा मिठाई बांटकर दीवाली का पर्व मनाने की परम्परा आरंभ हुई।
दीवाली - राजा बलि की कथा
पुरातन युग में दैत्यों के राजा बलि ने अपने जीवन में दान देने का वचन लिया था। कोई याचक उससे जो वस्तु माँगता राजा उसे वह वस्तु देता था। उसके राज्य में जीव-हिंसा, मद्यपान, वेश्यागमन, चोरी और विश्वासघात उन पाँच महापातकों का अभाव था।
पुरातन युग में दैत्यों के राजा बलि ने अपने जीवन में दान देने का वचन लिया था। कोई याचक उससे जो वस्तु माँगता राजा उसे वह वस्तु देता था। उसके राज्य में जीव-हिंसा, मद्यपान, वेश्यागमन, चोरी और विश्वासघात उन पाँच महापातकों का अभाव था।
चहुँओर दया, दान अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य का बोलबाला था। आलस्य,
मलिनता, रोग और निर्धनता उसके राज्य से कोसों दूर थीं।
लोग पारस्परिक स्नेह के साथ रहते थे। द्वेष और असूया को रोकने का भरसक प्रयास किया
जाता था। अतः इतने अच्छे राज्य का रक्षण करने के लिए भगवान विष्णु ने भी राजा बलि
का द्वारपाल बनना स्वीकार कर लिया था। उन्होंने राजा की धर्मनिष्ठा स्मृति को बनाए
रखने के लिए तीन दिन अहोरात्रि महोत्सव का निश्चय किया था। यही महोत्सव आज
दीपमालिका के नाम से प्रसिद्ध है।
दीवाली - लक्ष्मी गणेश पूजन
दीवाली - लक्ष्मी गणेश पूजन
वैसे तो प्राय: लक्ष्मी पूजन के साथ विष्णु की पूजा
होती है लेकिन दीवाली को लक्ष्मी और गणेश की पूजा का विधान है। इस विशेष पूजन का
क्या कारण है? इस बारे में एक कथा प्रचलित है।
एक बार एक राजा ने प्रसन्न होकर एक लकड़हारे को
एक चंदन का वन (चंदन की लकड़ी का जंगल) उपहार स्वरूप दिया।
लकड़हारा ठहरा साधारण मनुष्य! वह चंदन की महत्ता और मूल्य से अनभिज्ञ था। वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर भोजन बनाने के लिये प्रयोग करने लगा।
राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो उसकी समझ में आया कि संसाधन का उपयोग करने हेतु भी बुद्धि (ज्ञान) व ज्ञान आवश्यक है।
लकड़हारा ठहरा साधारण मनुष्य! वह चंदन की महत्ता और मूल्य से अनभिज्ञ था। वह जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर उन्हें जलाकर भोजन बनाने के लिये प्रयोग करने लगा।
राजा को अपने अपने गुप्तचरों से यह बात पता चली तो उसकी समझ में आया कि संसाधन का उपयोग करने हेतु भी बुद्धि (ज्ञान) व ज्ञान आवश्यक है।
यही कारण है कि लक्ष्मी जी (धन की प्रतीक देवी)
और श्री गणेश जी (ज्ञान के प्रतीक देव) की एक साथ पूजा की जाती है ताकि व्यक्ति को
धन के साथ साथ उसे प्रयोग करने की ज्ञान भी प्राप्त हो।
दीवाली - देवी लक्ष्मी कथा
दीवाली - देवी लक्ष्मी कथा
एक अन्य लोक कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी इस रात
अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। मान्यता है कि जिस घर में
साफ-सफाई और स्वच्छता हो, वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर
में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है।
एक और बात ध्यान देने योग्य है कि देवी सीता जो लक्ष्मी की अवतार मानी जाती हैं, वह भी भगवान श्री राम के साथ इसी दिन बनवास से लौट कर आई थी इसलिए भी इस दिन घर की साफ सफाई करके देवी लक्ष्मी का स्वागत व पूजन किया जाता है।
एक और बात ध्यान देने योग्य है कि देवी सीता जो लक्ष्मी की अवतार मानी जाती हैं, वह भी भगवान श्री राम के साथ इसी दिन बनवास से लौट कर आई थी इसलिए भी इस दिन घर की साफ सफाई करके देवी लक्ष्मी का स्वागत व पूजन किया जाता है।
दीवाली - साधु की कथा
एक बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा
हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी की कठोर तपस्या की। कठोर तपस्या के
फलस्वरूप लक्ष्मी ने उस साधु को राज सुख भोगने का वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त
कर साधु राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के पास जाकर राजा का राज मुकुट नीचे
गिरा दिया। यह देख राजा क्रोध से कांपने लगा। किन्तु उसी क्षण उस राजमुकुट से एक
सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध समाप्त हो गया और प्रसन्नता
से उसने साधु को अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा।
साधु ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और
वह मंत्री बना दिया गया। कुछ दिन बाद उस साधु ने राजमहल में जाकर सबको बाहर निकल
जान का आदेश दिया। चूंकि सभी लोग उस साधु के के चमत्कार को देख चुके थे, अत: उसके कहने पर सभी लोग
राजमहल से बाहर आ गए तो राजमहल स्वत: गिरकर ध्वस्त हो गया। इस घटना के बाद तो
सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था का कार्य उस साधु द्वारा होने लगा। अपने बढ़ते प्रभाव
को देखकर साधु को अभिमान हो गया और वह अपने को सर्वेसर्वा समझने लगा। अपने अभिमानवश एक दिन साधु ने राजमहल के सामने स्थित गणेश की मूर्ति को वहां
से हटवा दिया, क्योंकि उसकी दृष्टि में यह मूर्ति
राजमहल के सौदर्य को बिगाड़ रही थी। अभिमानवश एक दिन साधु ने राजा से कहा कि उसके कुर्ते में सांप है अत: वह कुर्ता
उतार दें। राजा ने पूर्व घटनाओं के आधार पर भरे दरबार में अपना कुर्ता उतार दिया
किन्तु उसमें से सांप नहीं निकला। फलस्वरूप राजा बहुत नाराज हुआ और उसने साधु को
मंत्री पद से हटाकर जेल में डाल दिया। इस घटना से साधु बहुत दुखी हुआ और उसने
पुन: लक्ष्मी की तपस्या की।
लक्ष्मी ने साधु को स्वप्न में बताया कि उसने
गणेश की मूर्ति को हटाकर गणेश को नाराज कर दिया है। इसलिए उस पर यह विपत्ति आई
है क्योंकि गणेश के नाराज होने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई तथा धन या लक्ष्मी के
लिए बुद्धि आवश्यक है, अत: जब तुम्हारे पास बुद्धि
नहीं रही तो लक्ष्मीजी भी चली गई। जब साधु ने स्वप्न
में यह बात जानी तो उसे अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ।
साधु को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने
पश्चाताप किया तो अगले ही दिन राजा ने भी स्वत: जेल में जाकर साधु से अपनी गलती
के लिए क्षमा मांगी और उसे जेल से मुक्त कर पुन: मंत्री बना दिया।
मंत्री बनने पर साधु ने पुन: गणेश की मूर्ति
को पूर्ववत स्थापित करवाया, साथ ही साथ लक्ष्मी की भी मूर्ति स्थापित की और सर्व साधारण को यह बताया
कि सुखपूर्वक रहने के लिए ज्ञान एवं समृद्धि दोनों जरूरी हैं। इसलिए लक्ष्मी एवं
गणेश दोनों का पूजन एक साथ करना चाहिए। तभी से लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन की
परम्परा आरम्भ हो गई।
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दीवाली की महत्ता
श्री रामचन्द्र के चौदह वर्ष का बनवास काटकर
इसी दिन अयोध्या लौटने के अतिरिक्त भी कई अन्य दंतकथाएं इस त्योहार के साथ जुड़ी
हुई हैं।
धर्मराज युधिष्ठर के राजसूर्य यज्ञ की
समाप्ति भी इसी दिन हुई थी।
आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द
सरस्वती का निर्वाण भी इसी दिन हुआ था।
जैनियों के चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी
को भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। इसलिए इस त्योहार का अत्याधिक महत्व है।
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Author:भारत-दर्शन संकलन
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