Monday 7 August 2023

वर्तमान परिदृश्य में शिक्षण संस्थाओं में दंड देने के मायने

 आजमगढ़ के चिल्ड्रंस गर्ल्स स्कूल में तीसरी मंजिल से

गिरकर एक छात्रा की मौत का मामला आया ..माता पिता ने बच्ची की हत्या की आशंका जताई है. बच्ची के साथ कुछ गलत होने का संदेह व्यक्त किया है. सामान्य स्थिति में कोई भी मां-बाप यही करेगा. एक तथ्य यह भी निकल कर आ रहा है कि किसी गलती पर बच्ची को प्रिंसिपल ऑफिस के सामने खड़ा करके बेइज्जत किया गया और शायद शारिरिक दण्ड भी दिया गया और उसने फ्रस्टेशन में आकर जान दे दी.. 

   दूसरी वाली संभावना ज्यादा है. मामले में प्रिंसिपल और टीचर को गिरफ्तार किया गया है और इस गिरफ्तारी के विरोध में प्राइवेट स्कूलों ने एक दिन के सांकेतिक हड़ताल की बात कही है..हम सभी शिक्षकों संस्था प्रमुखों एवं प्रबंधकों को एक बात समझ लेनी चाहिए कि ऐसी किसी स्थिति में सबसे आसान शिकार आप हैं अतः आपको अपना पक्ष मजबूत रखना चाहिए कोई गैर कानूनी कृत्य नहीं करना चाहिए..वर्तमान समय में संबंध शिष्य और गुरु के ना होकर कस्टमर और सप्लायर के हैं.. यह बात एक विद्यालय का प्रबंधन,प्रधानाचार्य और अध्यापक सभी जानते हैं..


अब जरा RTE के क्लाज 17 को पढ़ें

17. बालक के शारीरिक दंड एवं मानसिक उत्पीड़न का प्रतिषेध–(1) किसी बालक को शारीरिक दंड नहीं दिया जाएगा या उसका मानसिक उत्पीड़न नहीं किया जाएगा..

(2) जो कोई उपधारा (1) के अनुबंध का उल्लंघन करेगा वह ऐसे व्यक्ति को लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्यवाही का दायी होगा..


अगर RTE के इस धारा के अनुसार मानक तय किया जाए तो ज्यादातर अध्यापक जेल के अंदर होंगे. क्योंकि भले ही शारीरिक सजा में कमी आई हो या ना दिया जाता हो परंतु मानसिक उत्पीड़न का पैरामीटर डिसाइड कर पाना आसान नहीं है...आज के 20-25 साल पहले बच्चे अभाव में पले बड़े होते थे घर पर भी दंड का प्रावधान अपेक्षाकृत ज्यादा था अतः ऐसे किसी दंड की स्थिति में वो बच्चे मानसिक रूप से अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत होते थे. वर्तमान में बच्चे शारीरिक और मानसिक दंड को लेकर बिल्कुल ही मजबूत नहीं है.RTE लागू होने के बाद शारीरिक व मानसिक दंड का प्रावधान बिल्कुल खत्म कर दिया गया है.. और दंड के प्रावधानों को खत्म भी कर देना चाहिए क्योंकि पूर्व में ऐसे अनेकों उदाहरण आए हैं जिसमें अध्यापक ने व्यक्तिगत एवं कार्यस्थल की समस्याओं का गुस्सा बच्चों को दंड देते समय हावी रहा है.. कई बार बच्चों की जान तक चली गई है. ऐसी घटनाओं के पीछे एक कारण यह भी है कि सामान्य स्थिति में शिक्षक बनना किसी भी व्यक्ति की प्राथमिकता नहीं होती है...वो नौकरी तो पा जाता है मगर मनोवैज्ञानिक रूप से शिक्षक बनने और बच्चों के साथ डील करने के लिए तैयार ही नहीं होता है. ऐसी स्थिति में आरटीई द्वारा दंड को प्रतिबंधित करना एक बहुत ही सराहनीय निर्णय था. 

अब वर्तमान में विद्यालयों अध्यापक एवं प्रबंधन को यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि दंड देने की प्रथा बीते जमाने की बात हो गई और यदि वह अपना विद्यालय और परिवार सही से चलाना चाहते हैं तो किसी भी स्थिति में किसी भी बच्चों को दंड न दें. बालक द्वारा किसी भी प्रकार के अनुशासनहीनता की स्थिति में उसे समझाने का प्रयास करें, यदि वो नहीं समझता है तो लिखित पत्र व्यवहार करके के अभिभावक को सूचित करें.

   आशा है इन घटनाओं से सबक लेकर अध्यापक और प्रबंधन अतिरिक्त सावधानी बरतेंगे जिससे ऐसी असहज  स्थितियों से बचा जा सके साथ ही साथ अभिभावकों का भी उत्तरदायित्व है कि बच्चों की समय समय पर काउंसलिंग करें जिससे बच्चे ऐसी समस्याओं और स्थितियों का सामना बेहतर तरीके से कर सके.. 


आशुतोष की कलम से